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00:45, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे= कौन कहाँ कौ राव / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=चिंता और उछाह मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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<poem>
'''सोरठा'''
''(कवि उक्ति)''
तब तजि संभ्रम-बास, मति कौ यह उपदेस सुनि ।
चाँह्यौ करन प्रकास, रचि राधा-माधव-सुजस ॥५१॥
</poem>