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00:59, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
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{{KKPageNavigation
|पीछे=जैसी कछु कीन्ही द्विज-देव की बिनै के बस / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=ठौर-ठौर निरखि मरंद सौ झरत रस / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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<poem>
'''सोरठा'''
''(सरस्वती आशीर्वाद-वर्णन)''
बैठी चित-हित चाँहि, मम बिनती सुनि भारती ।
हिय सिंगार-लतिकाहि, भाँति-अनेक असीस दै ॥५५॥
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