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01:42, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=आसिष पाइ, उपाइ-बिनु / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=अति मींठी मति के बसैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''दोहा'''
''(कवि की स्वयं उक्ति)''
चाँहत करन प्रसिद्ध इत, उत डराइ रहि जाउ ।
उर-अंतर ता-छन परयौ, ऐसौ संभ्रम भाउ ॥५८॥
</poem>