{{KKPageNavigation
|पीछे=रसिक छमैंगे भूल / शृंगार-लतिका / द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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रसिक रीझिहैं जानि, तौ ह्वै है कबितौ सुफल ।
न तरु सदाँ सुखदानि, श्री राधा-हरि कौ सुजस ॥६५॥
॥इति प्रथम सुमनम्॥
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