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आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे / गुलाब खंडेलवाल
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20:05, 6 जुलाई 2011
ज़िन्दगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ
कहने को
यों तो
कहने को
बहुत कुछ है, मगर जाने दे
तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार
Vibhajhalani
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