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आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे / गुलाब खंडेलवाल
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21:23, 6 जुलाई 2011
रंग खुलता है तभी तेरी पँखुरियों का, गुलाब!
जब कोई लेके इन्हें,
इनके
उनके
मुक़ाबिल बैठे
<poem>
Vibhajhalani
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