गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की -- / गुलाब खंडेलवाल
3 bytes removed
,
21:28, 6 जुलाई 2011
यों तो हरदम लग रही है शह हमारे मात की
राख पर अब
उनके
उनकी
लहरायें
समुन्दर
समन्दर
भी तो क्या
सो गए जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की!
Vibhajhalani
2,913
edits