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दिन गुज़रते गये, रात होती रही / गुलाब खंडेलवाल
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21:38, 6 जुलाई 2011
दिन गुज़रते गये, रात होती रही
ज़िन्दगी
खुद
ख़ुद
-ब-
खुद
ख़ुद
मात होती रही
प्यार की कोई
खुशियाँ
ख़ुशियाँ
मनाता रहा
और आँखों से बरसात होती रही
Vibhajhalani
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