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वहीं जो पाँव ठिठक जाय, क्या करे कोई / गुलाब खंडेलवाल
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18:40, 8 जुलाई 2011
लटों को उलझी हुई ज़िन्दगी की सुलझाते
किसी का
किसीका
हाथ जो थक जाय, क्या करे कोई!
गुलाब छिपके भी रह लेंगे डालियों में मगर
नज़र जो उनकी अटक जाय, क्या करे कोई!
<poem>
Vibhajhalani
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