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नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है / गुलाब खंडेलवाल
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19:13, 8 जुलाई 2011
उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
हरेक
शाख
शाख़
जैसे झुकायी गयी है
ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
Vibhajhalani
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