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गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम, ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम / गुलाब खंडेलवाल
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20:26, 8 जुलाई 2011
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने
पलभर
पल भर
न खिलने दिया
आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
<poem>
Vibhajhalani
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