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बटुआ / एम० के० मधु
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{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में
/ एम० के० मधु
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<poem>
ज़िन्दगी को समेटते-समेटते
अनिल जनविजय
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