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प्यार की मंज़िल तो है इस बेख़ुदी से दो क़दम
सैकड़ों कोसों का जिसको फासला फ़ासिला समझे हैं हम
आँखों-आँखों में इशारा कर के करके आँखें मूँद लीं रुक के रुकके दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम!
देखकर तुझको झुका ली है नज़र उसने, गुलाब!
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