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यों तो हमेशा मिलते रहे हम, दोनों तरफ़ थी एक-सी उलझन / गुलाब खंडेलवाल
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20:15, 9 जुलाई 2011
ताब थी क्या लहरों की डुबा दें, नाव को डर तूफ़ान का कब था!
जिनके लिए हम मौत से जूझे,
खुद
ख़ुद
वे किनारे ही हुए दुश्मन
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया, किसमें नहीं काँटों की है कसकन!
<poem>
Vibhajhalani
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