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ज़िन्दगी देती है कब मिलने की मुहलत आपसे!
वह ग़ज़ल के नुक्तेनुक़्ते-नुक्ते नुक़्ते से है दुनिया पर खुली
लाख हम इस दिल की बेताबी कहें मत आपसे
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