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क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे! / गुलाब खंडेलवाल
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20:28, 9 जुलाई 2011
ज़िन्दगी देती है कब मिलने की मुहलत आपसे!
वह ग़ज़ल के
नुक्ते
नुक़्ते
-
नुक्ते
नुक़्ते
से है दुनिया पर खुली
लाख हम इस दिल की बेताबी कहें मत आपसे
Vibhajhalani
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