गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
तेरी बेरुख़ी ने मुझको ये हसीन ग़म दिया है / गुलाब खंडेलवाल
1 byte removed
,
20:37, 9 जुलाई 2011
ये बता कि कह रहा क्या तेरे ख़त का हाशिया है
वो नज़र से जानेवाला मेरे दिल में आके बोला
,
'सभी कुछ वही है, हमने ज़रा घर बदल लिया है'
Vibhajhalani
2,913
edits