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साथ हरदम भी बेनक़ाब नहीं / गुलाब खंडेलवाल
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19:52, 13 जुलाई 2011
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
क्यों
दिए
दिये
पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
Vibhajhalani
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