गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ऐसी लगन लगी प्राणों में, पीड़ा ही गलहार बन गयी / गुलाब खंडेलवाल
1 byte removed
,
20:27, 13 जुलाई 2011
सुरभि, पँखुरियों का उन्मीलन, सबने मुग्ध नयन से देखा
सींचा पाटल-मूल
किसी ने
किसीने
,
लांघ
लाँघ
कुटिल काँटों की रेखा!
वह तो करुणा-दृष्टि तुम्हारी, अनल-शिखा जलधार बन गयी
Vibhajhalani
2,913
edits