Changes

साँसों की लघु लहर लहरती आयी संसृति कूल पर
किसका था संकेत, निमिष में शत-शत दीपक जल उठे
अगणित ज्योति शिखायें -शिखाएं फूटीं एक अतीन्द्रिय फूल पर
जितने विषमय तीर चुभाये कंठ में,
स्वर उतना मधुमय था मेरी तान का
करुणा की बाँसुरी सुनाकर, यह तुमने क्या कर दिया!
तुमने प्राणों की पीड़ा को बातों से बहला लिया
मन की आकुलता का भींगी भीगी पलकों से उत्तर दिया
अश्रु-सजल अधरों पर जो पलती रही
अर्थ ढूँढ़ता हूँ मैं उस मुस्कान का
प्रथम प्रेम की एक शिखा पर सारा जीवन झिल गया
लिखती है इतिहास आजतक चेतना,
तुमसे मेरी पलभर की पहचान का
मेरा वश क्या टूट रही अभिव्यक्ति में!
2,913
edits