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इस मधुर स्वप्न का कहीं अंत! (दशम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
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21:22, 13 जुलाई 2011
इस मधुर स्वप्न का कहीं अंत!
प्रिय!
निश्छल
निश्चल
मानस में भर दी, तुमने कितनी छवियाँ दुरंत!
उर को आशा के गान दिये
इस मधुर स्वप्न का कहीं अंत!
प्रिय!
निश्छल
निश्चल
मानस में भर दी, तुमने कितनी छवियाँ दुरंत!
<poem>
Vibhajhalani
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