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इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यहह यह विषाद? 
रानी तुम हो, यह मधु रजनी
पुलकित दिगंत, सुरभित अवनी
आकांक्षाओं का स्वर्ण-इंदु
दुःख में भी भरता मधुर स्वाद
 
इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यहह यह विषाद?
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