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मैं करता सबको आत्मसात
तुम बन सुषमा की मलय-वात
बरसाती चिर -यौवन -वसंत
इस मधुर स्वप्न का कहीं अंत!
प्रिय! निश्चल मानस में भर दी, तुमने कितनी छवियाँ दुरंत!
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