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स्वयं वन्दिनी पिंजरे में जब तड़प रही हो माता / सप्तम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
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21:11, 14 जुलाई 2011
यद्यपि कोटि-कोटि हृदयों तक उड़ जातीं बेपाँखें
एक सत्य की
और
ओर
लगी थीं पर बापू की आँखें
जादू था न चतुरता कोई, नहीं छद्म या छल था
उन आँखों में जो भी बल था, सत्य-प्रेम का बल था
Vibhajhalani
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