{{KKCatGhazal}}
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जब वो अपने मिटा कर नगर गया होगालम्हा-फिर वो लम्हा ठहर गया होगा
है वो हैवान, आईने में मगर उसको डर कैसाख़ुद खुद से मिलते ही, डर गया होगा
तेरे कूचे से खाली जिस सवाली के हाथ लिए खाली थेवो मुसाफ़िर, सवाली किधर गया होगा
छाँव की चाह में अब न ढूंढो वो जलता बदनसुबह का भूला
शाम होते ही घर गया होगा