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मानस के मंदिर में जलती अब भी कैसी यह स्नेह-शिखा (द्वितीय सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल
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20:34, 16 जुलाई 2011
दैत्यों का राज दिला तुमको पूरे कर दूँगी सब सपने
उर्वशी यहीं
खिंच
खिँच
आयेगी वंदी सुरपति के साथ-साथ
दिखलाना उसकी नृत्य-कला मुझको चरणों में बिठा नाथ!'
Vibhajhalani
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