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हम सब माया-मृग हैं / गुलाब खंडेलवाल
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21:04, 16 जुलाई 2011
हम सब माया-मृग हैं
हम
सभी ने
सभीने
ऊपर से सोने की छालें ओढ़ रखी
है
हैं
,
बस मुखौटे अलग-अलग हैं.
<poem>
Vibhajhalani
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