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जिसके संदेशों को, चिर आकाश-कुसुम मिल गया अयत्न  
 
वह आकाश-कुसुम जिसको प्रताप ने ढूँढा ढूँढ़ा जीवन भर
अरावली के गिरि-श्रृंगों पर, वह जिसके हित वीर शिवा
फिरा वनों की ख़ाक छानता करतल पर मस्तक लेकर,
 
कौन अमृत-फल वही हमारे मुख के सम्मुख गिरा गया!
फिरा हमने हमें खोयी स्वतंत्रता, हमसे आँखें फिरा गया!
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