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भारत मेरे स्वप्नों का वह, जिसमें सब समान, सब एक, / गुलाब खंडेलवाल
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21:38, 16 जुलाई 2011
'सब समानधर्मा, धर्माचारी सब, अभय अशोक, अलिप्त
सभी पाप से भीत, पुण्यकर्मा, सब एक दूसरे के
सुख से सुखी, दुखी
दुःख
दुख
से हों, जैसे अयुत सरों में दीप्त
आकृतिया हों एक भानु की, सब सबमें सबको देखें
Vibhajhalani
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