एक बार ही उपालम्भमय सुन पत्नी की झिड़कियाँ
कवि ने सब कुछ छोड़, गेरुआ और कमंडल धर लिया
और यहाँ प्रतिनिमिष बिंधा भी प्रियायहाँ प्रतिनिमिष बिँधा भी प्रिया-व्यंग्य-विष-बाण में अस्थि-चरम से लिपटा हूँ मैं जूँ न रेंगती कान में मैं, जूँ न रेंगती कान में
<poem>