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शक्ति दे, मन को सुदृढ़ बनाऊँ / गुलाब खंडेलवाल
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20:17, 19 जुलाई 2011
जब भी विकल हुआ मैं स्वामी!
तूने ही बाँहें हैं थामी
निज दुर्बलता
,
अन्तर्यामी! तुझको क्या बतलाऊँ
!
दुःख
दुख
जितना भी हो, सब सह लूँ
बढ़ा-घटाकर जग से कह लूँ
दुःख
दुख
में भी सुख से ही रह लूँ
बस इतना वर पाऊँ
Vibhajhalani
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