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पत्थर का टुकड़ा / गुलाब खंडेलवाल
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20:29, 19 जुलाई 2011
अपने जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में सिमटी-सकुची
मेरी काया
अपने आप से ही मुँह चुराने लगी
.
वहाँ किसी के गले में मोतियों का हार था
और किसी की उँगलियों में
Vibhajhalani
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