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जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ / गुलाब खंडेलवाल
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21:25, 20 जुलाई 2011
मिले पिता, माता, गुरु वैसे
बीते जो दिन सपने जैसे
कहाँ
ढूँढने
ढूँढ़ने
जाऊँ
वह सम्मान मिला, यश छाया
सोच-सोच पछताऊँ
चारों
और
ओर
लगा हो मेला
रहूँ भीड़ में किन्तु अकेला
जिनका विरह न जाये झेला
Vibhajhalani
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