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मेरे भारत मेरे स्वदेश / गुलाब खंडेलवाल
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21:59, 20 जुलाई 2011
तू राम-कृष्ण की मातृ-भूमि
सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि
जीवन-
दातृ
दात्री
, भाव-धातृ भूमि
तुझको प्रणाम हे पुण्य-वेश!
. . .
तेरे गांडीव-पिनाक कहाँ?
शर, जिनसे सृष्टि
अवाक
अवाक्,
कहाँ?
धँस जाय धरा वह धाक कहाँ?
ओ साधक कर नयनोन्मेष!
Vibhajhalani
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