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भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा (कविता) / कुमार विश्वास
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03:47, 21 जुलाई 2011
कोई ख़्वाबों में आकार बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है , साजिश है
उसे बाहों में खुलकर
कास
कस
लिया दो पल तो हंगामा
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
Pranav Upadhyay
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