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उमर खैयाम / गुलाब खंडेलवाल
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20:22, 21 जुलाई 2011
'सैंकड़ों वर्ष फिरे भी न फिरेगा यह क्षण
दिन ढलें लाख, न यह रात पुन:आयेगी
रत्न-सा
छूट
छुट
न कभी हाथ लगेगा यौवनरूप की लौट न
बरात
बारात
पुन: आयेगी
"ज्ञान की बाँध बड़ी पोट गले गुरुओं के
Vibhajhalani
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