Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=रेत पर चमकती मणियाँ / गुल…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=रेत पर चमकती मणियाँ / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[category: कविता]]
<poem>

ज़हर को पीना ही नहीं, पचाना पड़ता है,
अपमान की ठोकरें खाकर भी मुस्कुराना पड़ता है,
तब कहीं चिड़ियाँ के घोंसले में एक दाना पड़ता है.
<poem>
2,913
edits