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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीपी-रचित रेत / गुलाब खंडेलवाल
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अर्धनग्न तनु, मुख पर झीना किसलय-अवगुंठन खींचे
बैठी उन्मन प्रेम-व्यथायें भर कंपित स्वर-लहरी में,
चिर-एकाकिनीएकाकिनि! अयि मरुवासिनीअयि मरुवासिनि! इस पीपल -तरु के नीचे
कौन वसंती स्वर अलापती तुम निर्जन दोपहरी में?
 
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