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शिशिर-बाला / गुलाब खंडेलवाल
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21:44, 21 जुलाई 2011
धूल भरी पलकें मलती, अलकें कपोल से खिसकाती,
बारबार कटि-वसन खींचती, विस्मित खोयी-सी निज में,
शिथिल करों
शिथिल करों
से पोंछ अधर पर से रवि के चुम्बन, गाती
कौन, आह! तुम ओसकणी-सी जग के सूखे सरसिज में?
Vibhajhalani
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