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कोयल की कुहक का यहीं अंत है / गुलाब खंडेलवाल
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21:46, 21 जुलाई 2011
माना, पुन: लौटता वसंत है
तरु से
जो
पत्र आज झड़ गया
आयेगा रूप लिए फिर नया
जीवन अमर है यही जानकर
Vibhajhalani
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