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मधुर स्पर्श से फूट रही हैं ध्वनियाँ प्यारी-प्यारी
 
साज साज़ भले ही जड़ है सारा
तारों पर तो हाथ तुम्हारा
जब भी कभी जोर से मारा
 
चाहे ठाठ बिखर भी जाये
राग कभी मिटता न मिटाए मिटाये
फिर-फिर नव तंत्री ले आये
हे वादक! बलिहारी
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