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23:12, 21 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये
रह न सकी अपने में ऐंठी
राधा द्वार निकट जा बैठी
मुरली ध्वनि कानों में पैठी
अंग अंग लहराये
पीताम्बर की आभा पाई
चारों और दृष्टि दौड़ायी
पावों की आहट तो आयी
श्याम नहीं दिख पाये
फिर घनश्याम गगन में छाये
दूर द्वारिका से चलकर फिर ब्रजमंडल में आये
<poem>