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'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था / गुलाब खंडेलवाल
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23:13, 21 जुलाई 2011
धरती- गगन एक कर देता
कभी आपको, कंस-विजेता
कुछ भी कठिन नहीं था
'अश्व आपके रथ के पल में
जाते उड़ तारा-मंडल में
वृन्दावन तो बस करतल में
पलकों तले यहीं था
'नहीं वृन्दावन दूर कहीं था
क्यों न चले आये मनमोहन! यदि मन सदा वहीं था!'
<poem>
Vibhajhalani
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