राग न छूट सका नव वय का
सुर अब भी है वही हृदय का
लाख जोग-जप साधे
'वेणु बजाता वंशीवट पर
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर
नयन खोलकर आधे
'फिर-फिर वृन्दावन में आके
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारी प्रेम-कथा के
पृष्ठ रहे जो सादे'
'मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!'
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