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लगा रक्खी है उसने भीड़ मज़हब की, सियासत की / कृष्ण कुमार ‘नाज़’
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13:56, 22 जुलाई 2011
वो चेहरे से ही मेरे दिल की हालत भाँप लेता है
ज़रूरत ही नहीं
पड़्ती
पड़ती
कभी शिकवा-शिकायत की
डरी सहमी हुई सच्चाइयों के ज़र्द चेहरों पर
Krishna Kumar Naaz
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