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आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे / गुलाब खंडेलवाल
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,
19:40, 22 जुलाई 2011
ज़िन्दगी का बड़ा लंबा है सफ़र, जाने दे
सुबह आयेगा कोई पोछने आँसू भी
, '
गुलाब
!
'
रात जिस हाल में जाती है, गुज़र जाने दे
<poem>
Vibhajhalani
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