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उतरती आ रही हैं प्राण में परछाइयाँ किसकी! / गुलाब खंडेलवाल
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19:41, 22 जुलाई 2011
कोई जैसे मुझे अब दूर से आवाज़ देता है
बुलाती हैं
'
गुलाब
'
आँखों की वे अमराइयाँ किसकी!
<poem>
Vibhajhalani
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