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09:12, 28 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
|संग्रह=
}}
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<poem>
'''एक मिस्ड काल'''
मोबाइल पर
आज फिर
दिखलायी दी है
एक मिस्ड काल।
जैसे
राख के ढेर में
बच रही कोई चिंगारी
छिटक कर
आ गिरी हो
किसी सूखे पत्ते पर।
</poem>