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|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला
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'''एक मिस्ड काल'''

मोबाइल पर
आज फिर
दिखलायी दी है
एक मिस्ड काल।

जैसे
राख के ढेर में
बच रही कोई चिंगारी
छिटक कर
आ गिरी हो
किसी सूखे पत्ते पर।

</poem>
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