गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है / आदिल रशीद
164 bytes removed
,
14:21, 1 अगस्त 2011
जो बन संवर के वो एक माहरू <ref> चान्द जैसे चेहरा वाला</ref>निकलता है
तो हर ज़बान से बस अल्लाह हू <ref> हे भगवान</ref>निकलता है
ये चाँद रात ही दीदार का वसीला है
बरोजे ईद ही वो खूबरू निकलता है
हलाल रिज्क का मतलब किसान से पूछो
Aadil Rasheed
38
edits