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<Poem>
अपने हर कौल <ref> कथन </ref> से, वादे से पलट जाएगा
जब वो पहुंचेगा बुलंदी पे तो घट जाएगा
अपने किरदार को तू इतना भी मशकूक <ref> जिस पर शक हो </ref>न कर
वर्ना कंकर की तरह से दाल से छट जाएगा
जिसकी पेशानी <ref>माथा,ललाट</ref>तकद्दुस <ref>पाकीज़गी</ref> का पता देती है
जाने कब उस के ख्यालों से कपट जाएगा
उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो, उसी वक़्त पलट जाएगा
क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कूजे में सिमट जाएगा
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तक़द्दुस,कौल,पेशानी,किरदार,मशकूक,तन्ज़,वुसअत,कुजे
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</poem>
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