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सूरज अभी निकला है / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
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11:24, 8 अगस्त 2011
<poem>
जीने के लाखों हैं , मरने के हज़ारों हैं
सूरज अभी निकला है ,क्यों सोचें मरने की ।
जीवन के द्वारे पर ,कभी भीख नहीं माँगी
जीने की तमन्ना है कि मरने नहीं देती
उनकी तो रही फ़ितरत अंगारे धरने की ।
</poem>
वीरबाला
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